महिलाएं बुरा नहीं समझतीं कन्या भ्रूण हत्या
Source: ननु जोगिंदर सिंह | Last Updated 04:54(12/02/11)
लुधियाना। वो कन्या भ्रूण हत्या की बुराइयों से वाकिफ हैं, जानती हैं कि आने वाले समय में सामाजिक ढांचा बिगड़ेगा लेकिन जब अपनी बात आती है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता का रवैया अपनाती हैं। कन्या भ्रूण हत्या के मामले में महिलाएं तर्क देती हैं कि पैदा होगी तो कौन सा सुख मिलेगा। यह नतीजा सामने आया है पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) के अध्ययन में। डा.आशु कलारमन की गाइडेंस में निहारिका जोशी ने यह अध्ययन किया है। 78 फीसदी महिलाएं कन्या भ्रूण हत्या का विरोध तो करती हैं लेकिन साथ ही कहती हैं कि उनके भ्रूण हत्या कराने या न कराने से लिंग अनुपात में कोई फर्क नहीं आने वाला है। 64 फीसदी महिलाओं का मानना है कि परिवार को बैलेंस बनाने के लिए इस बात का अधिकार माता-पिता के पास होना चाहिए कि वह बेटा पैदा करें या बेटी। ताकि परिवार में एक बेटा और एक बेटी शामिल रहे।
सास के वर्ग में 12 फीसदी महिलाओं ने कन्या भ्रूण हत्या को सही बताया। जबकि 78 फीसदी ने इसे न अच्छा कहा न बुरा। छोटी उम्र की महिलाएं इसे बुरा मानती हैं। 10 फीसदी उम्र-दराज महिलाओं ने इसका विरोध किया जबकि 77 फीसदी बहुओं ने। दोनों वर्ग इस बात से भलीभांति वाकिफ दिखे कि देश में लिंग अनुपात गड़बड़ा रहा है। वह इस बात के प्रति चिंतित भी दिखीं कि लिंग अनुपात गड़बड़ाने से महिलाओं के प्रति हिंसा में वृद्धि होगी। लिंग आधारित अबॉर्शन को महिलओं ने बैलेंस परिवार प्राप्त करने का जरिया बताया। वह बेटा होने को सामाजिक सम्मान से जोड़ती हैं। दहेज को वह बेटी पैदा करने में सबसे बड़ी समस्या बताते हैं। दोनो वर्ग की महिलाएं इस मुद्दे पर एकमत हैं कि बेटियों को पढ़ाया जाए ताकि वह आत्मनिर्भर जीवन जी सकें।
लुधियाना के छह गांवो में जट्ट सिख संयुक्त परिवारों की सास-बहू पर अध्ययन किया गया। यह दो आर्थिक तबके थे। 200 सैंपल महिलाओं के अध्ययन से पहले उनकी शिक्षा, परिवार, आर्थिक स्थिति का आंकलन किया गया। इसमें सिर्फ वही बहुएं शामिल की गईं जिनकी एक बेटी है और वह दूसरा बच्चा चाहती हैं।
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