Saturday, January 5, 2013



नई दिल्ली. पैरामेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों को फांसी की सजा देने के लिए सरकार को कानून बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। दअरसल, सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में इलाज के दौरान पीड़िता की मौत के बाद दिल्ली पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर लिया है, जिसके तहत अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान है। दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर (कानून-व्यवस्था) धर्मेंद्र कुमार ने इसकी पुष्टि की है। अभी तक इन आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 201 (सबूत मिटाने का प्रयास), 365 (अपहरण), 376-2-जी (सामूहिक दुष्कर्म), 377 अप्राकृतिक अपराध, 394 (लूटपाट के दौरान मारपीट) और 34 (समान उद्देश्य) का मामला दर्ज किया गया था। स्पेशल कमिश्नर धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि पीड़िता की अटॉप्सी सिंगापुर अस्पताल में की गई है। इसकी रिपोर्ट जल्द से जल्द हासिल हो जाएगी। दिल्ली पुलिस की कोशिश है कि 3 जनवरी 2013 तक सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी जाए। फास्ट ट्रैक कोर्ट में दिन-प्रतिदिन होने वाली सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष रखने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील ध्यानकृष्णनन इस केस में विशेष लोक अभियोजक होंगे। ध्यानकृष्णनन ने स्वेच्छा से नि:शुल्क इस केस में पैरवी करने की इच्छा जताई थी। उन्हें उनके दो कनिष्ठ सहयोगी इस केस में मदद करेंगे। दिल्ली पुलिस की कोशिश होगी कि सभी आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। उल्लेखनीय है कि सभी छह आरोपियों राम सिंह, उसके भाई मुकेश, अक्षय सिंह, पवन, विनय सहित एक नाबालिग को दिल्ली पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। नाबालिग के अतिरिक्त सभी आरोपी इस समय तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में हैं। पूरा देश विचलित है : शनिवार सुबह से ही युवा, महिलाएं, बुजुर्ग सभी सड़कों पर निकल आए। कहीं मुंह पर काली पट्टी बांधकर, मोमबत्ती जलाकर संवेदना जताई जा रही थी, तो कहीं तीखी आवाजों, तख्तियों पर लिखे शब्दों से आक्रोश सामने आ रहा था। हर कोई इस दरिंदगी के खिलाफ कड़े कानून बनाने और दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग कर रहा था। लोगों के दर्द में सहभागी बनने पहुंचीं दिल्ली की मुख्यमंत्री तक को सुनने-देखने को कोई तैयार नहीं था। जंतर-मंतर पर मौजूद युवाओं ने उन्हें तत्काल वापस जाने पर मजबूर कर दिया। छात्रा को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई देने की मांग तेज हुई है। वहीं मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों ने 29 दिसंबर को महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने की मांग की है। एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स के निदेशक सुहास चकमा ने कहा कि इस घटना से बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। छात्रा के साथ गए डॉक्टर ने कहा : दिल्ली में ही उसके सारे अंगों ने काम करना बंद कर दिया था, सिंगापुर में सिर्फ जांच ही हुई। पीडि़त युवती के साथ सिंगापुर गए मेदांता अस्पताल के डॉ. यतीन मेहता ने कहा कि छात्रा के खून में प्लेटलेट्स नहीं बन रहे थे। लंग्स भी काम नहीं कर रहे थे। फेफड़ों के साथ-साथ पूरे शरीर में संक्रमण फैल गया था। इससे उसके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। डॉ. मेहता ने कहा कि सिंगापुर में मरीज की जो स्थिति थी, उस स्थिति में ज्यादा इलाज संभव नहीं हो पाया था। वहां के डॉक्टरों ने पहुंचते ही उसके शरीर के सभी अंगों तथा खून की जांच की थी। लेकिन उनके पास इतना समय नहीं था कि कोई अतिरिक्त इलाज किया जा सके। महिलाओं के सम्मान करने का लें संकल्प भारत का युवा इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक प्रदर्शन कर रहा है। कानून जब बनेगा, तब बनेगा। महिलाओं के खिलाफ अपराध तब रूकेंगे जब हम उनकी दिल से इज्जत करेंगे। इस बार इसी संकल्प को करने का मौका है, हमारे महाअभियान से जुड़कर। हमारे इस महाअभियान से जुड़िए और संकल्प लीजिए कि मैं महिलाओँ का सम्मान करूंगा।


रेपिस्टों और भारत सरकार में क्या फर्क?
नई दिल्ली। तालिबान को चुनौती देने वाली पाकिस्तान की बहादुर लड़की मलाला यूसफजई ने दिल्ली में गैंग रेप की शिकार लड़की को सिंगापुर शिफ्ट करने के भारत सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं। मलाला ने भारत सरकार की आलोचना करते हुए उसकी तुलना रेपिस्टों से की है। 15 वर्षीय मलाला ने टि्वटर पर लिखा है कि रेपिस्टों ने लड़की को सड़क पर फेंक दिया और भारत सरकार ने सिंगापुर में। अंतर क्या है?गौरतलब है कि पीडित को सिंगापुर शिफ्ट करने के फैसले पर पहले ही सवाल उठाए जा रहे थे। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के एक डॉक्टर ने बताया था कि पीडिता को सिंगापुर भेजने का फैसला डॉक्टरों की सलाह पर नहीं लिया गया था। उसे सिंगापुर शिफ्ट करने का ऊपर (सरकार)से निर्देश आया था। उन्होंने बताया कि लड़की को सिंगापुर भेजने से करीब 22 घंटे पहले ही उसके ब्रेन डेमेज हो चुका था। ब्लड क्लॉट की वजह से लड़की का ब्रेन डेमेज हुआ,जिसके चलते उसे दो हार्ट अटैक भी आए थे। हालांकि उन्होंने बताया कि लड़की को हार्ट बीट डीसी शॉक देकर वापस लाई गई थी लेकिन इस प्रोसेस के चलते उसके ब्रेन पर असर हुआ। इसके बाद न्यूरोलॉजिस्ट से भी कंसल्ट किया गया था। 
इंसान बनाओ,मां!
कोई सोचकर देखे कि "दामिनी" की मां क्या सोच रही होगी- कि दामिनी उसके पेट से पैदा ही क्यों हुई। उसे कौनसे कर्म की सजा मिली है। आज देश में रोजाना कितनी दामिनियां इस पीड़ा से गुजर रही हैं। सम्पूर्ण लोकतंत्र- विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका मौन है। स्वयं को चौथा स्तंभ कहने वाला मीडिया दोगला व्यवहार करता हुआ दिखाई पड़ रहा है। उसे देश में होते सैंकड़ों गैंग रेप दिखाई नहीं देते। तीनों स्तंभों के मौन को सहज मान रहा है। क्यों? इस देश में यह वातावरण क्यों बना, इस पर विचार ही नहीं राष्ट्रव्यापी बहस होनी चाहिए। प्रत्येक संत का धर्म है कि वह इस विषय पर अपने सम्प्रदाय में मन्थन शुरू करवाए। यह तो तय है कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ इस समस्या का मूल हैं। "सरकारें" और अधिकारी कालेधन और भुजबल एवं माफिया के साथ सीधे जुड़ गए हैं। इतनी बड़ी राशि केवल माफिया ही खपा सकता है। फिर बाकी खेल उसके भुजबल का परिणाम है। उसे सत्ता का भय नहीं रह गया है। जितने घोटाले दिल्ली में,सरकारों में,सामने आए, यही कारण दिल्ली के गुण्डाराज का है। पुलिस इस बात से आश्वस्त है कि दिल्ली सरकार क्या बिगाड़ लेगी। केन्द्र तो घोटालों का मूल केन्द्र है। पुलिस अलग-अलग रूप से साथ ही जुड़ी रहती है। अत: कानून की पालना होती ही निर्बलों पर है। समरथ को नहीं दोष गुसांई। दर्जनों जनप्रतिनिधि और अधिकारी आज भी ऎसे अपराधों के बाद आराम से घूम रहे हैं। सत्ता का उन्हें पूर्ण अभयदान प्राप्त है। उनके लिए कानून तो मानो है ही नहीं। पहले तो पुलिस छोड़ देती है, वह पकड़े तो कानूनी लचीलेपन का फायदा उठाकर बच निकलते हैं। कानून में भी आमूल-चूल बदलाव अपेक्षित है। गैंगरेप और बलात्कार के दोषियों को तो फांसी की सजा अनिवार्य कर देनी चाहिए। बलात्कार की घटनाएं कुछ झूठी भी निकल जाती हैं। प्रमाणित हो जाने पर इसमें भी आजीवन कारावास तो होना ही चाहिए। कानून निर्माताओं को ध्यान में रखना चाहिए कि दहेज, यौन-शोषण के साथ-साथ बलात्कार वह मुख्य कारण है जो एक मां को कन्या भू्रण हत्या के लिए मजबूर करता है। कौन मां अपनी बच्ची को ऎसे दानवों एवं सरकारी दबावों (अस्मत देने के) के भरोसे बड़ा करना चाहेगी? समाज का भौतिक जीवन स्तर, संस्कृति, मानसिकता, अपेक्षाभाव तथा मूल्यहीन जीवन विस्तार भी ऎसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। न तो कोई मां-बाप अपने बच्चों को कुछ समय देते हैं, न शिक्षकों को उनके जीवन से सरोकार रह गया है। शिक्षा के पाठ्क्रम तय करने वाले दिमाग से नकल करने वाले हैं। पढ़ाई को भी स्टेटस सिंबल बना दिया है। पेट भरना इसका उद्देश्य है। आज का शिक्षित,मन और आत्मज्ञान की दृष्टि से तो अपूर्ण ही कहा जाएगा। अपूर्ण व्यक्ति ही मनुष्योत्तर (पाशविक) कार्य के प्रति आकर्षित होता है। वरना जिस देश में इतना युवा वर्ग हो,वहां अपराधी चैन से जी सकता है! झूठे सपनों ने,बिना पुरूषार्थ के धनवान बन जाने की लालसा ने युवा वर्ग को चूडियां पहना दीं। छात्रसंघ चुनाव में तो वह अपनी शक्ति का राजनीतिक प्रदर्शन कर सकता है,किन्तु मौहल्ले के गुण्डे से दो-दो हाथ नहीं कर सकता। धूल है इस जवानी को,जो देश की आबरू से खिलवाड़ करे। अब समय आ गया है जब जनता स्वयं अपराधियों का सामाजिक बहिष्कार भी करना शुरू करे। चुनाव सिर पर आ रहे हैं। हम सब मिलकर जनप्रतिनिधियों,अधिकारियों से संकल्प करावें कि यदि वे अथवा उनके परिजन बलात्कार में लिप्त पाए गए, तो वे स्वयं इस्तीफा दे देंगे। वरना जनता उन्हें व्यक्तिगत रूप से बाध्य कर देगी। अधिकारी भी स्वयं को इस दृष्टि से संभाल लें। भौतिकवाद ने जीवन को स्वच्छन्दता दी है। तकनीक ने जीवन की गति बढ़ा दी है। एक गलती करने के बाद पांव फिसल जाता है। लौटकर सीधे खड़े हो पाना कठिन होता है। समाज में संस्कार लुप्त ही हो गए। दकियानूसी बन गए। परिवर्तन जो भी हो रहा है,बहुत तेज हो रहा है। किन्तुु एक पक्षीय हो रहा है। भोग संस्कृति ने आदमी, विशेषकर औरत को भोग की वस्तु बना दिया है। सत्ता के चारों ओर बस धन, माफिया,भोग,हत्या ही बचे हैं। जीवन शरीर पर आकर ठहर गया है। दर्शन पुस्तकों में,कर्म और कर्म-फल गीता में तथा पुनर्जन्म का भय टी.वी.-सत्ता ने भुला दिया है। इस सारे वातावरण में यदि कोई आशा की किरण बची है,तो वह है मां। वह चाहे तो आज भी अपनी संतान को सुसंस्कृत कर सकती है,ताकि वह सुख से जी सके। एक स्त्री के पाले-पोषे बच्चे किसी भी स्त्री का अपमान नहीं कर सकते। बाहर परिवर्तन को स्वीकार भी करें,आगे भी बढ़े, साथ ही भीतर भारतीय भी बने रहें,तभी इस त्रसादी से मुक्त हो सकेंगे।





Khuda Ki Banai Pak Seerat Ki Izzat Na Kar Sako
Mohsin
To Use Kabhi Beizzat Karne Ka Hosla Bhi Na Rakhna







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