Happy Childrens Day & Save Female Child
India is growing dynamically in every fields, Every Way. Today, India is Growing in economy, technologies, IT and improved infrastructure has become nation’s pride. The country has witnessed advancements in all fields but Shame today some Indian's destroyed Female FOETUS in the country. .So Please Join this community and stand up! against Who killing female child... Female Child.......! ....... Is Nation's Pride! A Happy Girl is ...! future of our country.!
Sunday, November 14, 2010
Saturday, November 13, 2010
WE ARE FOLLOW "SINDOOR SAREES" CAMPAIGN
Sindoor Sarees Center Located AT. Main Road, Pandharkawada, Dist : Yavatmal
Pro.Pra. Mr. Satish Bajaj.
They have started female feticide anti-campaign ..........
Monday, November 8, 2010
भारत में कन्या भ्रूण हत्या:एक अभिशाप
अल्ताफ़ हुसैन बीबीसी के उत्तर भारत संवाददाता | ||
दिल्ली में रहने वाली मधुमति दो लड़कियों की माँ बनने के बाद जब तीसरी बार गर्भवती हुई तो उसने भ्रूण परीक्षण कराया. ये पता लगने पर कि उसके भ्रूण में फिर एक कन्या पल रही है उसने गर्भपात करा लिया.
भ्रूण हत्या की यह प्रक्रिया उसने इस उम्मीद के साथ आठ बार दोहराई कि वो एक बेटे की माँ बन सके.
एक अनुमान के अनुसार भारत में पिछले दस वर्षों में क़रीब डेढ़ करोड़ लड़कियों को जन्म से पहले ही मार डाला गया या फिर पैदाइश के बाद 6 वर्षों के अंदर ही उनको मौत के मुँह में धकेल दिया गया.
भारत के जनसंख्या आयुक्त और महापंजीयक जेके भाठिया का कहना है कि 1981 में लड़कियों की संख्या 1000 लड़कों के मुकाबले में 960 थी जो अब गिरकर 927 पर आ गई है.
पंजाब और कुछ अन्य उत्तरी राज्यों में तो यह संख्या 780 तक गिर गई है. भाठिया के शब्दों में "पंजाब के हाथ खून से रंगे हैं".
जन्म से पहले लड़कियों को मारने की प्रथा भारत में महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव यानी माँ के गर्भ में बच्चे की लैंगिक जाँच कराने की तकनीक आने के साथ ही आरंभ हो गई थी.
किस तरह की बचत? 'आज 500 रूपये ख़र्च कीजिए, कल दहेज के 5 लाख रूपये बचाईए. |
इस प्रकार के परीक्षण अल्ट्रसाउण्ड के ज़रिए भी किए जा सकते हैं. दिल्ली के अपोलो अस्पताल में फीटल मेडिसिन यानी गर्भ में बच्चों की बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ पुनीत बेदी को खेद व्यक्त करते हुए कहते हैं कि भारत में लगभग 30,000 डॉक्टर दौलत के लालच में तकनीक का दुरूपयोग कर रहे हैं.
"ऐसे लोग कन्या भ्रूण हत्या के अपराध में न सिर्फ भागीदार बनते हैं बल्कि बेटे की इच्छा रखने वाली माँताओं को इसके लिए उकसाते भी हैं. बेटे की ख़्वाहिश तो हमेशा से थी लेकिन इन डॉक्टरों ने महिलाओं से कहा कि जब भी आपको लड़की नहीं चाहिए, हमारे पास आ जाओ. हम गिरा देंगे."
कुछ डॉक्टरों ने तो ऐसे विज्ञापन भी लगवाए जिनपर लिखा था 'आज 500 रूपये ख़र्च कीजिए, कल दहेज के 5 लाख रूपये बचाईए.'
सरकार
आठ वर्ष पूर्व सरकार ने एक क़ानून पारित कर भ्रूण परीक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इस क़ानून पर अमल अब तक नहीं के बराबर है.
केंद्र सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव काँग इस तथ्य से सहमत हैं. उनका कहना है, 'देश में 22,000 ऐसे क्लीनिक हैं जहाँ इस प्रकार के परीक्षण कराए जा सकते हैं. हमारे पास इतने साधन नहीं कि हम इनपर निगरानी रख सकें.'
लड़कियों को जन्म से पहले मारने की प्रथा धीरे-धीरे उन जगहों पर भी प्रचलित हो रही है जो अब तक इससे बचे हुए थे.
जम्मू-कश्मीर राज्य के पंजाब के साथ लगने वाले ज़िले पहले से ही पंजाब की राह पर निकल पड़े थे लेकिन अब तो श्रीनगर शहर में भी स्थिति चिंताजनक हो गई है.
लड़कियों के प्रति इस नकारात्मक स्वभाव के गंभीर सामाजिक और अन्य प्रभाव हो सकते हैं.
सर्वप्रथम बार-बार गर्भपात से औरतों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.
ग़ैर-सरकारी संगठनों ने - महिला उत्थान अध्ययन केंद्र और सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च ने एक संयुक्त प्रकाशन में चेतावनी दी है कि यदि महिलाओं की संख्या यूँ ही घटती रही तो 'महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसात्मक घटनाऐं बढ़ जाएंगी.
चेतावनी विवाह के लिए उसका अपहरण किया जाएगा, उसकी इज़्ज़त पर हमले होंगे, उसे ज़बरदस्ती एक से अधिक पुरूषों की पत्नी बनने पर मजबूर भी किया जा सकता है. |
"विवाह के लिए उसका अपहरण किया जाएगा, उसकी इज़्ज़त पर हमले होंगे, उसे ज़बरदस्ती एक से अधिक पुरूषों की पत्नी बनने पर मजबूर भी किया जा सकता है."
अरब जातियों में लड़कियों को ज़िंदा दफ़न करने की प्रथा असभ्य काल में प्रचलित थी लेकिन भारत में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा उन क्षेत्रों में उभरी है जहाँ शिक्षा, ख़ासकर महिलाओं की शिक्षा काफी उच्च दर पर है और लोगों का आर्थिक स्तर भी अच्छा है.
महिला उत्थान के लिए काम करने वाली ग़ैर सरकारी संगठन 'जागूरी' की अध्यक्षा कल्याणी मेनन सेन का कहना है, "स्त्री जिस शिक्षा के लिए महिला आंदोलन चलाए गए, वही शिक्षा आज जहाँ पहुँची है वहाँ महिलाओं की संख्या घट रही है."
"महिला शिक्षा अपने आप में महिला उत्थान का कारण नहीं बन सकती बल्कि यह शिक्षा के उत्तम स्तर पर निर्भर करता है."
आम राय
सामाजिक कार्यकर्ताओं में भी इस पर सहमति है. बल्कि अब तक होने वाले सर्वेक्षण भी इसका समर्थन करते हैं कि महिलाओं के ख़िलाफ़ नकारात्मक रुझान को ख़त्म करने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना ज़रूरी है.
उड़ीसा राज्य में महिला तथा बाल कल्याण विभाग के प्रधान सचिव सतीश अग्निहोत्री का कहना है, "जहाँ-जहाँ पर महिलाओं की श्रम में भागीदारी अधिक है वहाँ यह समस्या कम है. लड़की को अवांछित बनाने वाले सामाजिक परिवेश को ही हमें बदलना होगा."
अग्निहोत्री इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि स्त्रियों को श्रम भागीदारी ही काफ़ी नहीं बल्कि उनके कार्य करने के स्थान पर उनकी भौतिक सुरक्षा का इंतज़ाम करना भी ज़रूरी है क्योंकि क़ानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति का प्रभाव सबसे अधिक कमज़ोर वर्ग पर ही पड़ता है.
लड़कियों की संख्या तेज़ी से घटने का एक ख़ास कारण यह भी माना जाता है कि भारत सरकार के जनसंख्या नियंत्रण अभियान में ख़ामियाँ रही हैं और इसमें अब ज़बरदस्ती का पहलू भी शामिल किया गया है.
कल्याणी मेनन कहती हैं कि आंध्र प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में सरकार ने दो से अधिक बच्चे रखने वाले माता-पिता को कुछ अधिकारों से वंचित करने की नीति अपनाई है.
मिसाल के तौर पर तीन बच्चों की माँ को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, यदि वह सरकारी कर्मचारी है तो उसे प्रसव के लिए अवकाश नहीं दिया जाता. तीसरे बच्चे को मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाऐं प्रदान नहीं की जातीं.
कल्याणी सेन कहती हैं कि बेशक इस नीति से तीसरे बच्चे के मानवाधिकारों का हनन होता है, साथ ही उसके माता-पिता को मजबूर किया जाता है कि वो किसी भी तरीक़े से इस तीसरा बच्चा पैदा करने से बचें और यदि वो चाहें कि दो बच्चों में से कम से कम एक लड़का हो तो दूसरी बार लड़की के गर्भधारण पर अवश्य ही गर्भपात कराएगें.
भारत सरकार तत्काल जनसंख्या नियंत्रण प्रक्रिया पर पुनर्विचार करने पर राज़ी नहीं.
केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने अब तक महिलाओं के विकास के लिए किसी ख़ास योजना की घोषणा नहीं की है लेकिन महिला उत्थान के लिए काम करने वाले संगठनों की ओर से सरकार पर दवाब लगातार बढ़ रहा है जिसका कुछ ठोस नतीजा निकलने की उम्मीद की जा सकती है.
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